गुरुवार, 29 दिसंबर 2005

सोमवार, 26 दिसंबर 2005

पिता का आशीर्वाद

एक बार एक युवक अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने वाला था।  उसकी बहुत दिनों से एक शोरूम में रखी स्पोर्टस कार लेने की इच्छा थी।  उसने अपने पिता से कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने पर उपहारस्वरूप वह कार लेने की बात कही क्योंकि वह जानता था कि उसके पिता उसकी इच्छा पूरी करने में समर्थ हैं।  कॉलेज के आखिरी दिन उसके पिता ने उसे अपने कमरे में बुलाया और कहा कि वे उसे बहुत प्यार करते हैं तथा उन्हें उस पर गर्व है।  फिर उन्होंने उसे एक सुंदर कागज़ में लिपटा उपहार दिया ।  उत्सुकतापूर्वक जब युवक ने उस कागज़ को खोला तो उसे उसमें एक आकर्षक जिल्द वाली भगवद् गीतामिली जिसपर उसका नाम भी सुनहरे अक्षरों में लिखा था।  यह देखकर वह युवक आगबबूला हो उठा और अपने पिता से बोला कि इतना पैसा होने पर भी उन्होंने उसे केवल एक भगवद् गीतादी।  यह कहकर वह गुस्से से गीता वहीं पटककर घर छोड़कर निकल गया।

बहुत वर्ष बीत गए और वह युवक एक सफल व्यवसायी बन गया।  उसके पास बहुत धन-दौलत और भरापूरा परिवार था।  एक दिन उसने सोचा कि उसके पिता तो अब काफी वृद्ध हो गए होंगे।  उसने अपने पिता से मिलने जाने का निश्चय किया क्योंकि उस दिन के बाद से वह उनसे मिलने कभी नहीं गया था।  अभी वह अपने पिता से मिलने जाने की तैयारी कर ही रहा था कि अचानक उसे एक तार मिला जिसमें लिखा था कि उसके पिता की मृत्यु हो गई है और वे अपनी सारी संपत्ति उसके नाम कर गए हैं।  उसे तुरंत वहाँ बुलाया गया था जिससे वह सारी संपत्ति संभाल सके।

वह उदासी और पश्चाताप की भावना से भरकर अपने पिता के घर पहुँचा।  उसे अपने पिता की महत्वपूर्ण फाइलों में वह भगवद् गीताभी मिली जिसे वह वर्षों पहले छोड़कर गया था।  उसने भरी आँखों से उसके पन्ने पलटने शुरू किए।  तभी उसमें से एक कार की चाबी नीचे गिरी जिसके साथ एक बिल भी था।  उस बिल पर उसी शोरूम का नाम लिखा था जिसमें उसने वह स्पोर्टस कार पसंद की थी तथा उस पर उसके घर छोड़कर जाने से पिछले दिन की तिथि भी लिखी थी।  उस बिल में लिखा था कि पूरा भुगतान कर दिया गया है।  

कई बार हम भगवान की आशीषों और अपनी प्रार्थनाओं के उत्तरों को अनदेखा कर जाते हैं क्योंकि वे उस रूप में हमें प्राप्त नहीं होते जिस रूप में हम उनकी आशा करते हैं।

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2005

साइबर मंदिर

हम में से अधिकतर लोग किसी न किसी कारणवश प्रतिदिन मंदिर जाकर भगवान को माथा नहीं टेक सकते। अत: अब प्रस्तुत है - साइबर मंदिर जिससे आप घर या कार्यालय कहीं भी केवल कंप्यूटर के द्वारा ही मंदिर जा सकते हैं। मंदिर जाने के लिए केवल नीचे दी गई कड़ी पर क्लिक कीजिए ।

सोमवार, 5 दिसंबर 2005

रेत और पत्थर

एक बार दो दोस्त रेगिस्तान में से होकर कहीं जा रहे थे । रास्ते में उनमें किसी बात पर बहस हो गई और एक दोस्त ने दूसरे दोस्त को थप्पड़ मार दिया । जिस दोस्त को थप्पड़ मारा गया था वह बहुत दुखी हुआ पर उसने बिना कुछ बोले रेत पर लिखा, आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने मुझे थप्पड़ मारा। थोड़ा और आगे चलने पर उन्हें एक झील दिखाई दी और उन दोनों ने पानी में नहाने का विचार बनाया । पहला दोस्त जिसे थप्पड़ लगा था, दलदल में फँस गया और डूबने लगा । तब दूसरे दोस्त ने उसकी जान बचाई । डूबने से बचने पर उसने एक पत्थर पर लिखा, आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने मेरी जान बचाई। इस पर दूसरे दोस्त ने पूछा कि जब मैनें तुम्हें थप्पड़ मारा तब तुमने रेत पर लिखा पर जब मैंने तुम्हारी जान बचाई तब तुमने पत्थर पर लिखा, ऐसा तुमने क्यों किया ? इस पर पहले दोस्त ने उत्तर दिया, जब कोई तुम्हें दुख पहुँचाता है तो उसे रेत पर लिखना चाहिए जिससे क्षमा की आँधी उसे मिटा सके। पर जब कोई तुम्हारे साथ भलाई करता है तो उसे पत्थर पर लिखना चाहिए जिससे समय की हवा भी उसे मिटा न सके।
अपने साथ किए गए बुरे बर्ताव को रेत पर और भलाई को पत्थर पर लिखना सीखिए।