सोमवार, 12 मार्च 2007

हम तो भैया ऐसे ही हैं.........

यहाँ हम तो से मेरा आशय हम हिंदुस्तानियों से है।  हम सब लोगों में कोई न कोई अच्छी या बुरी आदत अवश्य होती है।  यहाँ उन आदतों के बारे में बताया जा रहा है जो हम हिंदुस्तानियों में अमूनन तौर पर पाई जाती हैं।  हम लोग अपने घर से तो सारा कूड़ा निकाल देते हैं और उसका ढेर लगाते हैं पड़ोसी के दरवाजे पर या गली के नुक्कड़ पर ।  अपने घर-आँगन के फर्श को तो फिनायल वाले पानी से धोते हैं और सारा पानी जाकर जमा होता है पड़ोसी के घर के सामने।  सड़क पर या गाड़ी में चलते हुए फट से थूक देते हैं फिर चाहे वह थूक किसी राह चलते व्यक्ति पर ही क्यों न गिरे।  रेलगाड़ी में, बसों में मूँगफली के छिलके फैंकते हुए बिल्कुल नहीं हिचकते।  केले, संतरे खाकर छिलके रास्ते पर फैंकते हैं।  बेकार कागज़ की चिंदियाँ बनाकर मज़े से हवा में उड़ाते हैं।  सड़कों पर जमा बारिश के पानी में से बड़ी तेजी से गाड़ी निकालते हैं फिर चाहे गंदे पानी की उस बौछार से कोई राह चलता आदमी भीगे या दुपहिया पर बैठा आदमी।  जिस दीवार पर लिखा हो यहाँ पेशाब करना मना है वहीं आपको चार आदमी खड़े होकर भूमिगत पानी का स्तर बढ़ाते हुए दिख जाऎंगे।  अस्पताल, स्कूल के पास जहाँ लिखा हो यहाँ हार्न मत बजाएँ वहीं अधिकतर गाड़ी वाले बेसब्री से हार्न बजाते हुए दिख जाएँगे।  अपने घर छोटे भाई-बहनों या बच्चों की परीक्षा समाप्त हो गई तो हम फुल स्पीड पर गाने चलाएँगे फिर चाहे पड़ोसी के बच्चों की परीक्षा हो या उनके यहाँ कोई बीमार हो।  भले ही गाड़ियाँ खरीदे हुए 2-3 साल बीत जाएँ पर उसकी सीट पर चढ़े प्लास्टिक कवर नहीं उतारेंगे फिर चाहे उनसे कितना ही पसीना क्यों न आए।  हम लोग भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों की बुराईयाँ तो करते हैं पर इस व्यवस्था से लड़ने की कोशिश नहीं करते।  हम रिश्वत देते हैं, दूर-दूर की रिश्तेदारियाँ निकालते हैं जिससे हमारा काम निकल जाए।  भले ही हमें दूर तक सड़क पर जाम ही नज़र आ रहा हो फिर भी हम हार्न लगातार तब तक बजाते हैं जब तक कि हमारे आगे की गाड़ी वाला अपने बैक व्यू मिरर में हमें घूर कर नहीं देखता।  समय की कद्र करना तो हमने जैसा सीखा ही नहीं।  किसी के यहाँ से हमें सुबह के नाश्ते का निमंत्रण मिला हो तो हम मज़े से लंच के समय तक पहुँचते हैं और फिर मुस्कराते हुए कहते हैं कि आपने तो सोचा भी नहीं होगा कि हम इतनी जल्दी आ जाएँगे।  तो बात है कि संवेदनशीलता की।  अगर हम दूसरे लोगों, समाज व पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हों तो हम सब इनमें से कोई भी आदत नहीं पालेंगे।  अगर मेरे इस लेख से आप में से कोई भी अपनी कोई बुरी आदत छोड़ दे तो मैं अपना लेखन सफल मानूँगी।