tag:blogger.com,1999:blog-16245948.post114466391772529395..comments2023-08-23T17:14:08.140+05:30Comments on झरोखा: अनुगूँज १८: मेरे जीवन में धर्म का महत्वशालिनी नारंगhttp://www.blogger.com/profile/07725139668070862028noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-16245948.post-34915041885733953702015-02-09T15:50:35.698+05:302015-02-09T15:50:35.698+05:30सभी प्राणी जीना चाहते है, मरना कोई नहीं चाहता I सभी प्राणी जीना चाहते है, मरना कोई नहीं चाहता I SUNIL JAINnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16245948.post-20901918514438841382015-01-05T21:08:31.398+05:302015-01-05T21:08:31.398+05:30Kya kare yaaro ho jata he ...Kya kare yaaro ho jata he ...Krishnmurarihttps://www.blogger.com/profile/16148758917956974521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16245948.post-39049325188800018802012-07-12T13:53:54.521+05:302012-07-12T13:53:54.521+05:30वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना...वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना किसी भी आम मनुष्य के लिए कठिन कार्य है । इसलिए मनुष्य को सदाचार एवं मानवीय मूल्यों के साथ जीना चाहिए एवं मानव कल्याण के बारे सोचना चाहिए । इस युग में यही बेहतर है ।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16245948.post-86741500257766773802012-06-18T16:37:35.384+05:302012-06-18T16:37:35.384+05:30धर्म का अर्थ - सत्य, न्याय एवं नीति (सदाचरण) को धा...धर्म का अर्थ - सत्य, न्याय एवं नीति (सदाचरण) को धारण करके कर्म करना एवं इनकी स्थापना करना ।<br />व्यक्तिगत धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके, उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है ।<br />असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म होता है ।<br />सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । वर्तमान में न्यायपालिका भी यही कार्य करती है ।<br />धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है । धर्म पालन में धैर्य, संयम, विवेक जैसे गुण आवश्यक है ।<br />धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।<br />व्यक्ति विशेष के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -<br />राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।<br />जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक व अनन्त काल तक रहेगा ।<br />धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर की उपासना, दान, पुण्य, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है । <br />धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।<br />राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है । by- kpopsbjriAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16245948.post-14417408734327481002012-06-18T16:36:54.760+05:302012-06-18T16:36:54.760+05:30धर्म का अर्थ - सत्य, न्याय एवं नीति (सदाचरण) को धा...धर्म का अर्थ - सत्य, न्याय एवं नीति (सदाचरण) को धारण करके कर्म करना एवं इनकी स्थापना करना ।<br />व्यक्तिगत धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके, उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है ।<br />असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म होता है ।<br />सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । वर्तमान में न्यायपालिका भी यही कार्य करती है ।<br />धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है । धर्म पालन में धैर्य, संयम, विवेक जैसे गुण आवश्यक है ।<br />धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।<br />व्यक्ति विशेष के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -<br />राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।<br />जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक व अनन्त काल तक रहेगा ।<br />धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर की उपासना, दान, पुण्य, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है । <br />धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।<br />राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है । by- kpopsbjriAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16245948.post-29774931123228464722011-02-15T12:16:46.161+05:302011-02-15T12:16:46.161+05:30शालिनी जी, बहुत ही उच्च कोटी का लेख लिखने के लिए ब...शालिनी जी, बहुत ही उच्च कोटी का लेख लिखने के लिए बहुत बहुत बधाइ।<br /><br />मैं युगल जी की बात से भी सहमत हूँ।Pankaj Jangidhttps://www.blogger.com/profile/03250629982256821107noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16245948.post-1145258867974514112006-04-17T12:57:00.000+05:302006-04-17T12:57:00.000+05:30लेख पसंद आने के लिए व उत्साह वर्धन के लिए आप सब का...लेख पसंद आने के लिए व उत्साह वर्धन के लिए आप सब का बहुत-बहुत धन्यवाद।शालिनी नारंगhttps://www.blogger.com/profile/07725139668070862028noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16245948.post-1144719092394040932006-04-11T07:01:00.000+05:302006-04-11T07:01:00.000+05:30बढ़िया लिखा।आगे भी अनुगूंज पर लेख लिखतीं रहें।बढ़िया लिखा।आगे भी अनुगूंज पर लेख लिखतीं रहें।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16245948.post-1144671759936156812006-04-10T17:52:00.000+05:302006-04-10T17:52:00.000+05:30अभिनन्दनशालिनि जीधर्म के उपर आपके विचार अच्छे लगे।...अभिनन्दन<BR/>शालिनि जी<BR/>धर्म के उपर आपके विचार अच्छे लगे।<BR/>बस मैं इतना कहना चाहता हूँ कि आध्यात्म धर्म का ही एक हिस्सा है।<BR/>आपने स्वयं ही लिखा है कि जिस शक्ति ने हमें, हमारे शरीर के धारण कर रखा है उसी शक्ति ने सारे विश्व को, संपूर्ण ब्रह्मांड को धारण कर रखा है वह धर्म है।Yugalhttps://www.blogger.com/profile/07262836865022038577noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16245948.post-1144669546977083032006-04-10T17:15:00.000+05:302006-04-10T17:15:00.000+05:30बहुत सुन्दर, शालिनी जी, आपने अपनी बात बहुत सरल ढंग...बहुत सुन्दर, शालिनी जी, आपने अपनी बात बहुत सरल ढंग से रखी है। एक तरफ़ देवी मन्दिरों मे बलि चढना और उनके भक्तो का अन्नजल छोड़कर उपवास करना, घोर विरोधाभास ही तो है। पता नही हम कब इस अन्धविश्वास से बाहर निकलेंगे?Jitendra Chaudharyhttps://www.blogger.com/profile/09573786385391773022noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16245948.post-1144665865318440992006-04-10T16:14:00.000+05:302006-04-10T16:14:00.000+05:30अनुगूंज में आपका पहला प्रयास सफल रहा, क्योंकि आपने...अनुगूंज में आपका पहला प्रयास सफल रहा, क्योंकि आपने अपने विचारों को बहुत ही स्पष्टता से रखा हैं. धार्मिक पाखण्ड पर सब ने लिखा पर आध्यात्मिकता कि ओर किसी का ध्यान नहीं गया था.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.com