एक बार जब एक बच्चा धरती पर जन्म के लिए तैयार था तो उसके मन में भय और आशंका के कई बादल उमड़ रहे थे। उसने भगवान से कहा कि मैंने सुना है कि आप मुझे जल्दी ही धरती पर भेज रहे हैं, पर मैं तो इतना छोटा और निशक्त हूँ तो वहाँ कैसे रहूँगा? भगवान ने कहा कि बहुत से फरिश्तों में से मैंने तुम्हारे लिए एक फरिश्ता चुना है जो धरती पर तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है और जो तुम्हारा ख्याल रखेगा। बच्चे ने फिर पूछा कि यहाँ आपके पास तो मैं बस गाता और मुस्कराता हूँ और खुश रहता हूँ वहाँ मेरा क्या होगा? भगवान ने कहा कि वह फरिश्ता तुम्हारे लिए गीत गाएगा और इतना प्यार देगा कि तुम वहाँ भी खुश रहोगे। बच्चे ने फिर पूछा कि मैं वहाँ के लोगों की भाषा कैसे समझूँगा? भगवान ने कहा कि वह फरिश्ता तुम्हें नए और मीठे शब्द सिखाएगा और धैर्य व मेहनत से बोलना सिखाएगा। बच्चे ने फिर पूछा कि अगर मेरा आपसे बात करने का मन करेगा तो मैं क्या करूँगा? भगवान ने कहा कि वह फरिश्ता तुम्हें हाथ जोड़कर प्रार्थना करना सिखाएगा। बच्चा फिर बोला कि पर मैंने सुना है कि धरती पर बहुत से बुरे लोग हैं, मुझे उनसे कौन बचाएगा? भगवान ने उसे बाँहों में भरकर कहा कि वह फरिश्ता तुम्हारी उन बुरे लोगों से रक्षा करेगा चाहे उसे अपनी जान की बाजी क्यों न लगानी पड़े।
तभी स्वर्ग में शांति सी छा गई और धरती से आवाज़ें स्पष्ट सुनाई पड़ने लगीं। बच्चे ने कहा कि अब मैं धरती पर जाने लगा हूँ तो आप मुझे जल्दी से मेरे फरिश्ते का नाम बता दीजिए। भगवान बोले कि तुम्हारे फरिश्ते का नाम कोई मायने नहीं रखता क्योंकि तुम उसे केवल 'माँ' कहकर पुकारोगे।
बुधवार, 10 मई 2006
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8 टिप्पणियां:
सुंदर प्रस्तुति है।मां तो सर्वोच्च है।सारी दनिया एक तरफ़ मां एक तरफ़।
मदर्स डे के पास इतना बढिया लेख-बहुत सुंदर।
समीर लाल
माँ पर इतना अच्छा लिखने के लिये साधुवाद शालिनी जी,
कवि कहते हैं "बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय" पर में इसमें संशोधन करने की ध्रृष्टता कर रहा हूँ
"बलिहारी माँ आपने गुरू से दियो मिलाय"
( माँ वो आप ही हैं जिसने मुझे जन्म देकर उन गुरू से मिलाया है,और जिन्होने मुझे गोविन्द से मिला दिया)
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि को पढ़ कर माँ के प्रति कहने को कुछ नहीं सूझ रहा है, शब्द अपूर्ण जान पड़ते हैं। इसलिये उपनिषद के शब्दों को इस्तेमाल करूंगा - 'यथो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह' - जहाँ से वाणी कुछ भी कहने में अक्षम हो कर मन के साथ वापस लौट आती है, वही 'माँ' है।
आखों में आँसू आ गये, कुछ लिखा नही जा रहा है, आप खुद ही समझ लीजिये, हृदय से धन्यवाद
अच्छा लेख. माँ बस माँ हैं, उसकी तुलना न ईश्वर से हो सकती हैं न फरिश्तो से. क्योंकि उन्हे हमने नहीं देखा हैं, पर माँ को देखा हैं. माँ तुझे सलाम.
क्या फादर्स डे भी होता हैं?
मुझे लगता हैं हमने माँ के गुणगान में पिता के बलिदानो को गौण कर दिया हैं.
आप सब का लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद। संजय जी, फादर्स डे जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है और पिता के बलिदानों को भी पूरा सलाम है। फादर्स डे पर भी यहीं लेख पढ़िएगा।
बहुत ही अच्छा लेख है शालिनी जी।
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