शुक्रवार, 30 सितंबर 2005

ताबूत

एक बार एक किसान बहुत बूढ़ा होने के कारण खेतों में काम नहीं कर सकता था।  वह सारा दिन खेत के किनारे पेड़ की छाँव में बैठा रहता था।  उसका बेटा खेत में काम करता रहता और रह-रह के सोचता कि  उसके पिता का जीवन व्यर्थ है क्योंकि वह अब कोई काम करने लायक नहीं रहा।  यह सोच-सोच कर उसका बेटा एक दिन इतना दुखी हो गया कि उसने लकड़ी का एक ताबूत बनाया और उसे घसीट कर पेड़ के पास ले गया।  उसने अपने पिता को उस ताबूत में लेटने के लिए कहा।  किसान एक शब्द भी बोले बिना उस ताबूत में लेट गया।  ताबूत का ढक्कन बंद करके बेटा ताबूत को घसीटता हुआ खेत के किनारे ले गया जहाँ एक गहरी खाई थी।  जैसे ही बेटा ताबूत को खाई में फैंकने लगा, ताबूत के अंदर से पिता ने उसे पुकारा।  बेटे ने ताबूत खोला तो अंदर लेटे उसके पिता ने शांत भाव से कहा कि मैं जानता हूँ कि तुम मुझे खाई में फैंकने वाले हो पर उससे पहले मैं तुम्हें कुछ कहना चाहता हूँ।  बेटे ने पूछा कि अब क्या है?  तब उसके पिता ने कहा कि तुम चाहो तो बेशक मुझे खाई में फैंक दो पर इस बढ़िया ताबूत को नहीं फैंको।  भविष्य में तुम्हारे बूढ़े होने पर तुम्हारे बच्चों को इसकी जरुरत पड़ेगी।

बुधवार, 21 सितंबर 2005

पैरों के निशान

एक रात एक आदमी ने एक सपना देखा ।  उसने सपने में देखा कि वह और भगवान समुद्र तट पर साथ-साथ टहल रहे हैं ।  आकाश में उसकी बीती जिंद़गी के दृश्य चलचित्र की तरह चल रहे थे ।  उसने देखा कि उसकी जिंद़गी के हर पल में रेत में दो जोड़ी पैरों के निशान थे, एक उसके पैरों के और दूसरे भगवान के पैरों के ।  जब उसकी जिंद़गी का आखिरी दृश्य उसके सामने आया तो उसने पीछे मुड़कर रेत में पैरों के निशानों को देखा।  उसने पाया कि उसकी जिंद़गी के कई पलों में रेत में केवल एक जोड़ी पैरों के निशान थे।  उसने महसूस किया कि ये उसकी जिंद़गी के सबसे बुरे और दुख-भरे पल थे ।  इस बात से वह बहुत परेशान हुआ और उसने भगवान से पूछा कि भगवान आपने तो कहा था कि जब मैंने एक बार आपका अनुसरण करने का निश्चय कर लिया तो उसके बाद आप जिंद़गी की राह पर मेरा साथ नहीं छोड़ेंगे ।  पर मैंने पाया है कि मेरी जिंद़गी के सबसे मुश्किल पलों में रेत में केवल एक जोड़ी पैरों के निशान हैं ।  मैं समझ नहीं पा रहा कि जब मुझे आपकी सबसे ज्यादा ज़रुरत थी तब आपने मुझे अकेला क्यों छोड़ दिया ?” भगवान ने उत्तर दिया कि मेरे बच्चे, मैंने तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ा ।  तुम्हारे बुरे और मुश्किल पलों में तुम केवल एक जोड़ी पैरों के निशान इसलिए देख रहे हो क्योंकि उस समय मैंने तुम्हें गोद में उठाया हुआ था ।

बुधवार, 7 सितंबर 2005

गणेश चतुर्थी (7 सितंबर 2005)

खुश रहने के सरल नियम

सोमवार, 5 सितंबर 2005

बातें स्कूल के दिनों की
...
मैं कक्षा में हमेशा प्रथम आने के कारण स्कूल में सभी अध्यापिकाओं की चहेती थी । जब मैं छठी कक्षा में थी तब हमारी अंग्रेजी की अध्यापिका श्रीमती सलूजा थीं । एक बार परीक्षा में मैंने अंग्रेज़ी के प्रार्थना पत्र में एक गलती की तो उन्होंने मेरा एक अंक काट लिया जबकि अन्य लड़कियों की तीन गलतियाँ होने पर एक अंक काटा । इस बारे में मैंने जब उनसे शिकायत की तो उन्होंने उत्तर दिया कि उन सब से अपनी तुलना मत करो, मुझे तुमसे गलती की आशा नहीं है, इसलिए ही मैंने तुम्हारा एक अंक काटा है जिससे भविष्य में तुम गलती न करो । उनकी उस बात से मुझे बहुत प्रेरणा मिली और मैं परीक्षा में ज्यादा सावधान रहने लगी।

नवीं कक्षा में हमारी सामाजिक विज्ञान की अध्यापिका श्रीमती सतनाम थीं । वे छोटे कद की गोलमटोल महिला थीं अत: हम आपस में उन्हें ड्रम कहते थे । सामाजिक विज्ञान में मेरी रूचि न के बराबर थी अत: उनकी अनुपस्थिती बहुत खुशी देती थी । हमारे स्कूल में सूचना पट्ट पर अध्यापिकाओं की छुट्टी की सूचना हर रोज़ लगाई जाती थी । कक्षा मॉनीटर होने के कारण मैं ही सूचना पट्ट देखने जाती थी । एक दिन सामाजिक विज्ञान का पीरियड शुरु होने पर भी जब सतनाम मैम नहीं आईं तो मैं सूचना पट्ट देखने गई । वहाँ लिखा था कि आज वे अनुपस्थित हैं तथा कक्षा मॉनीटर ही कक्षा में अनुशासन रखेगी । यह देखकर मैं खुशी से भागती हुई कक्षा में आई और मेज़ पर खड़े होकर ज़ोर-ज़ोर से हाथ हिलाते हुए बोली "चलो बच्चों खुश हो जाओ, आज ड्रम नहीं आया है" । उसी समय सतनाम मैम बोलीं, शालिनी नीचे उतरो मैं यहीं खड़ी हूँ । मेरे ऊपर तो घड़ों पानी पड़ गया । उस दिन के बाद से वे कक्षा में आते ही मुझे आगे खड़ा कर देती थीं जिससॆ मैं कुछ शैतानी न कर पाऊँ । आज 20 साल बाद भी मुझे यह घटना याद आती है तो हँसी रोकना मुश्किल हो जाता है।

ऐसे थे वे स्कूल के दिन, खुशी, मस्ती और बेफिक्री से भरे । सच ही है कि विद्यार्थी जीवन सब से अच्छा होता है । स्कूल और ज़िंदगी में फर्क बताते हुए किसी ने कहा है कि स्कूल में पहले सबक सिखाया जाता है और फिर परीक्षा ली जाती है पर ज़िंदगी पहले परीक्षा लेती है फिर सबक सिखाती है।
(शिक्षक दिवस पर मेरी सभी अध्यापिकाओं को सादर समर्पित)

शनिवार, 3 सितंबर 2005

कुछ पंक्तियाँ

नमस्कार दोस्तों, मेरे पन्ने में आपका स्वागत है ।
मेरी लिखी हुई कुछ पंक्तियाँ आपके सामने प्रस्तुत हैं जो अलग-अलग मनोस्थितियों को दर्शाती हैं ।

सुबह उठने से रात सोने तक, हर वक्त काम ही काम है
अरमानों का यह हश्र देखकर, न चैन न ही आराम है ।
शायद कभी यह मसरुफ़ियत खत्म होगी,
और हँसी फिर से मेरी हमदम होगी ।


जल रही हैं आँखें, सिर भी है भारी
यह तो है आजकल बड़ी कॉमन बीमारी ।
दिल्ली जो कभी शान थी, अब है प्रदूषण की मारी
चारों तरफ वाहनों का कोलाहल है भारी ।
ऐसे में कोई क्या करे, किससे कहे
क्योंकि सभी की तो जल रही हैं आँखें
और सिर भी है भारी ।


When the sun sets
Birds rest in their nests
Time to go home comes
Then my heart jumps
Not because I have to go home
But coz I am not alone
You are there always
To make me feel that way
All your care and affection
Like a mirror I give reflection
May God bless us with a life of dignity
And you remain mine till the eternity.