मंगलवार, 21 मार्च 2006

जिंदगी

बनो ऐसे फूल जो पूरी तरह खिल कर मुरझाए
न कि ऐसा पेड़ जिस पर कभी बहार ही न आए ।
बनो ऐसी चिंगारी जो पल भर ही चमक कर खाक हो जाए
न कि ऐसी रोशनी जो किसी को राह ही न दिखा पाए ।
बनो ऐसा धूमकेतू जो अपनी पूरी आभा से दमके
न कि ऐसा ग्रह जो दूसरों की रोशनी से चमके ।
अपने समय का सदुपयोग करो न कि व्यर्थ गँवाओ ।
अपनी जिंदगी को पूरी तरह जियो न कि बस बिताओ ।

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

शालिनी जी
"अपने समय का सदुपयोग करो न कि व्यर्थ गँवाओ ।
अपनी जिंदगी को पूरी तरह जियो न कि बस बिताओ । "

बहुत सुंदर और गहरी अभिच्यक्ती है. बधाई.
समीर लाल

Dharni ने कहा…

बहुत खूब। अंतरजाल पर आप जैसे हिन्दी प्रेमियों की बढ़ती हुई संख्या देख कर मन प्रसन्न हो गया!